कुटज हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रश्न उत्तर
कुटज
हजारी प्रसाद द्विवेदी
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न -
प्रश्न 1. कुटज को 'गाढ़े के साथी' क्यों कहा गया है?
उत्तर- 'गाढ़े के साथी' मुहावरे का अर्थ है बुरे समय में साथ देने वाला। महाकवि कालिदास ने 'मेघदूत' काव्य
में प्रिया को सन्देश भेजने के लिए यक्ष ने मेघ से प्रार्थना की। उस समय उसे रामगिरिपर कोई दूसरा पुष्प नहीं मिला, तो उसने कुटज पुष्प से ही अभ्यर्थना की । ग्रीष्म ऋतु में जब कोई पुष्प नहीं मिलता है, तब कुटज ही साथ देता है । इन कारणों से कुटज को 'गाढ़े का साथी' कहा गया है।
प्रश्न 2. 'नाम' क्यों बड़ा है ? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-लेखक ने नाम और रूप के बारे में विचार किया है कि इनमें से कौनसा मुख्य है, बड़ा है। वह सुदूर अतीत में झाँक कर देखता है और सोचता है, कुछ निष्कर्ष निकालता है कि नाम में क्या रखा है। जरूरत हो तो किसी के लिए कोई भी एक नाम दिया जा सकता है। साधारण नाम हैं और पौरुष के व्यंजक नाम भी हैं, जैसे - गिरिगौरव, पहाड़फोड़ आदि। नाम इसलिए ही बड़ा नहीं माना जाता कि वह नाम है । वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली हुई होती है। समाज उसका उपयोग करता है, उसे व्यवहार में लेता है ।
नाम और रूप में अन्तर है और इनमें से नाम बड़ा है ; क्योंकि रूप व्यक्ति-सत्य है, जबकि नाम समाज-सत्य
है। वह समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित और समाज के मन की गंगा में स्नान करके पवित्र हुआ होता है ।
प्रश्न 3. 'कुट', 'कुटज' और 'कुटनी' शब्दों का विश्लेषण कर उनमें आपसी सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर-'कुट' घड़े को कहते हैं और घर को भी । कुट अर्थात् घड़े से उत्पन्न होने वाले अगस्त्य को 'कुटज' भी
कहा गया है । संस्कृत में दासी को कुटिहारिका ओर कुटकारिका कहा जाता है । कुट से युक्त कुटिया और कुटीर शब्द भी हैं। इसी प्रकार कुटनी शब्द है। जो गलत आचरण वाली दासी होती है उ़से 'कुटनी' कहा जाता है । इस प्रकार कुट शब्द से ही कुटज और कुटनी शब्दों का सम्बन्ध है।
प्रश्न 4. कुटज किस प्रकार अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है?
उत्तर-कुटज का पौधा नाम और रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषणा करता जान पड़ता है। इसका नाम हजारों वर्षों से जीता चला आ रहा है क्योंकि यह विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति प्रकट करता है । यह कठोर पाषाण के अज्ञात जल-स्रोत से बलपूर्वक रस खींचकर लहलहाता रहता है । इसे भय भी नहीं लगता। यह सूने पर्वत के जंगल में भी मस्त होकर रह लेता है। यह सुख हो या दुःख, हर दशा में अपराजेय , जीवनी-शक्ति अपनाने की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 5. 'कुृटज' हम सभी को क्या उपदेश देता है? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-कुटज अपनी जीजिविषा के माध्यम से अवधूत की भाषा में कहता है कि चाहे. सुख मिले या दु :ख, प्रिय मिले या अप्रिय- उनसे विचलित मत हो। हर स्थिति में जिजीविषा रखो। परिस्थितियों से हार मत मानो। वह अपने आचरण से बताता है कि कठोर पाषाण को भेद कर, पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य प्रप्त करो, झंझा- तूफान को रगड़ कर अपना प्राप्य प्राप्त करो, आकाश को चूम कर उल्लास प्राप्त करो। अर्थात् हर परिस्थिति में अपनी जीवनी शक्ति को बनाये रखो।
प्रश्न 6. कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर-कुटज के जीवन से हमें- (1) सुख-दुःख में समान रहने की, (2) अपराजेय बने रहने की, (3) जिजीविषा रखने की, (4) सहिष्णुता एवं समत्व भाव रखने की, (5) निर्भय रहने की तथा (6) दूसरों की
खुशामद न करने की शिक्षा मिलती है। इससे अदम्य जीवनी - शक्त्ति के सहारे जीने की कला सीखने को मिलती है।
प्रश्न 7. कुटज क्या केवल जी रहा है -लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय कमजोरियों पर टिप्पणी की है?
उत्तर-पहली बात तो यह कि केवल जीने के लिए जीना कोई जीना नहीं है। जीवन के लिए तो जिजीविषा-जीने की प्रबल इच्छा-शक्ति से भी अलग कोई और शक्ति आवश्यक है । अपने में सब और सब में आप-ऐसी समष्टि - बुद्धि आनी चाहिए। लेकिन मनुष्य इस ओर ध्यान नहीँ देते हैं, स्वयं को 'सर्व' के लिए न्यौछावर कर देने का भाव नहीं रखते हैं। दूसरों को धर्म, नीति का उपदेश देना, अपनी उन्नति के लिए अफसरों का जूता चाटते फिरना, दृसरों को अपमानित करने अपने हित के लिए दूसरे से भीख तक माँग लेना, भय की स्थिति उत्पन्न होने पर घबरा जाना, स्वयं न अपनाकर के लिए ग्रहों की खुशामद करना, आत्मोन्नति हेतु नीलम आदि धारण करना-ये सब मानवीय कमजोरियाँ हैं।
प्रश्न 8. लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचण्ड कोई-न-कोई शक्ति
अवश्य है? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:- सामान्यतया लोग स्वार्थ या जिजीविषा को ही जीने का, सुख का आधार मानते है। लेखक ने ऋषि याज्ञवल्व्य का उदाहरण दिया है । उन्होंने अपनी पत्नी को बताया कि सब कुछ स्वार्थ के लिए है । पश्चिम के हॉब्स और हेल्वेशियस जैसे विचारकों ने भी ऐसी ही बात कही है; किन्तु लेखक स्वार्थ तथा ज़िजीविषा से भी प्रचण्ड किसी और शक्ति को महत्त्वरपूर्ण मानता है।
लेखक का मानना है कि स्वार्थ खण्ड-सत्य है। वह मोह, तृष्णा, कार्पण्य-दोष को ही उत्पन्न करता है। 'आत्मा' केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं है, वह व्यापक है। अपने में सब और सब में आप-इस प्रकार की एक समष्टि-बुद्धि जब तक नहीं आती है, तब तक पूर्ण सुख का आनन्द नहीं मिलता है। 'सर्व' के लिए अपने आपको
न्यौछावर कर देना पडता है। यही सच्चे सुख का उपाय है।
प्रश्न 9. 'कुटज' पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।'
उत्तर-'कुटज' पाठ में कुटज पुष्प के विपरीत परिस्थितियों में भी खिले रहने का विश्लेषण करते हुए
लेखक ने निष्कर्ष रूप में बतलाया है कि मन ही सुख और दु:ख की अनुभूति कराता है। सुख और दु :ख मन के ही विकल्प हैं । जो भी अपना मन वश में करे लेता है वह तो सुखी होता है; किन्तु जिसका मन अपने वश में नहीं वह दु:खी रहता है।
अन्य महत्त्वपूर्णं प्रश्न
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1. 'कुटज' निबन्ध किस लेखक की रचना है?
उत्तर-'कुटज' निबन्ध आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की रचना है ।
प्रश्न 2. 'कुटज' निबन्ध किसके विषय पर आधारित है?
उत्तर-कुटज एक पौधे का नाम है जो हिमालय पर्वत की ऊँची शिलाओं पर उगता है । इसके फूल की प्रकृति
निबंध का विषय है।
प्रश्न 3. लेखक ने 'कुटज' की क्या- क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर-कुटज में अपराजेय जीवनशक्ति है, स्वावलम्बन है, आत्मविश्वास है, विषम परिस्थितियों में शान से
जीने की क्षमता है।
प्रश्न 4. 'संस्कृतसर्वग्रासी भाषा है इसका क्या आशय है?
उत्तर-संस्कृत सबको ग्रहण करने वाली भाषा है जिसमें विभिन्न भाषाओं के शब्दों ने अपनी जगह बना ली है।
प्रश्न 5. लेखक के अनुसार मनुष्य किसकी इच्छानुसार कृत्य करता है?
उत्तर-लेखक ने बताया कि मनुष्य विधाता की इच्छानुसार कार्य करता है ।
प्रश्न 6. लेखक ने सुखी और दु:खी रहने के क्या कारण बताए?
उत्तर-लेखरक ने सुख और दु:ख को मन का विकल्प बताया । मन को वश में रखने वाला सुखी और जिसका
परवश वह दुःखी है।
प्रश्न 7. 'आत्ममस्तुकामाय सर्व प्रिय भवति' का क्या अर्थ है?
उत्तर- ऋषि याज्ञवल्क्य ने कहा 'सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते हैं।'
प्रश्न 8. 'हदयेनापराजित' लेखक ने किसके लिए कहा है ?
उत्तर-लेखक ने कुटज के लिए कहा है जो सुख से, दु :ख से, प्रिय से, अप्रिय से नहीं हारता है।
प्रश्न 9. 'कुटज' निबन्ध का अभीष्ट (इच्छा) क्या है?
उत्तर-सामान्य से सामान्य वस्तु में भी विशेष गुण हो सकते हैं । यह जताना इस निबन्ध का अभीष्ट है ।
प्रश्न 10. 'गाढ़े के साथी' किसे ओऔर क्यों कहा गया?
उत्तर-लेखक ने कुटज को कहा क्योंकि वह विपरीत परिस्थितियों में भी साथ नहीं छोड़ता।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1. "जीना भी एक कला है और कुटज इस कला को जानता है।" पाठ के आधार पर कथन समझाइए।
उत्तर-कुटज कठिन भौगोलिक परिवेश में भी कठोर पत्थरों को भेदकर धरती के गर्भ से रस ग्रहण करता है,
वायुमण्डल से जीवनी-शक्ति अर्थात् वायु अपनाता है। वस्तुत: जीना केवल कला ही नहीं एक कठोर तपस्या है । प्राण ढालकर जीवन-रस को अनुकूलता से ग्रहण करने पर ही जीना एक कला मानी गयी है । और कुटज इस कला में पारंगत है।
प्रश्न 2. "कठोर पाषाण को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य संग्रह करो।" इससे क्या
सन्देश व्यंजित हुआ है?
उत्तर-इससे यह सन्देश व्यंजित हुआ है कि जिजीविषा रखने से ही जीवन सही ढंग से भोगा जा सकता है।
कुटज कठोर पाषाण को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर और वायुमंडल को चूसकर अपना भोजन ग्रहण करता है। उसी प्रकार मनुष्य को भी साहस के साथ जीवन जीना चाहिए, हर हालत में अपना भोग्य प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 3. "कूटज को देखकर रोमांच हो आता है।" किस कारण लेखक ने ऐसा कहा है?
उत्तर-लेखक ने कुटज को भीष्म पितामह के कथनानुसार सुख-दु ःख, प्रिय - अप्रिय आदि किसी से भी विचलित नहीं होना बताया है, जो मिल जाए, उसे शान के साथ, अपराजित होकर तथा उल्लास सहित ग्रहण करता है। कुटज की ऐसी जीवनी-शक्ति देखकर लेखक को रोमांच हो आता है ।
प्रश्न 4. "पर्वत शोभा-निकेतन होते हैं । फिर हिमालय का तो कहना ही क्या! " लेखक के इस कथन पर
विचार कीजिए।
उत्तर-पर्वतों पर सामान्य रूप से ही सुन्दर दृश्य देखने को मिलते हैं । इस क्षेत्र में हिमालय और भी आगे है ।
हिमालय की बर्फ से लदी चोटियाँ अनुपम हैं। हिमालय को देखकर ही किसी के मन में समाधिस्थ महादेव की मूर्ति स्पष्ट हुई होगी। इसलिए लेखक ने उक्त कथन कहा है।
प्रश्न 5. "लेकिन दुनिया है कि मतलब से मतलब है, रस चूस लेती है, छिलका और गुठली फेंक देती है? "
इस कथन का अभिप्राय उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-यक्ष ने अभ्यर्थना के लिए कुटज पुष्प अपनाया, फिर स्वार्थ सधते ही वह उसे भूल गया । उसी प्रकार का
व्यवहार रहीम के साथ हुआ था। उन्होंने जो पाया, वह लुयाय दिया, लेकिन दुनिया स्वार्थी है । आम का रस चूस लेती है और छिलके तथा गुठली को फेक देती है। रहीम का उपयोग एक बादशाह ने किया और दूसरे ने उन्हें अलग कर दिया था।
प्रश्न 6. लेखक ने घड़े और अगस्त्य मुनि के बारे में क्या कहा है?
उत्तर-लेखक ने घड़े और अगस्त्य मुनि का उल्लेख कुटज के वर्णन के अन्तर्गत किया है। कुटज शब्द कुट
शब्द से पैदा हुआ है। कुट का अर्थ घड़ा है, कुट अर्थात् घडे से उत्पन्न होने के कारण अगस्त्य मुनि भी 'कुटज' कहे जाते हैं। इसलिए लेखक ने कुटज का अर्थ और सम्बन्ध अगस्त्य ऋषि से जोड़ा।
प्रश्न 7. उन्नीसर्वीं शताब्दी के भाषा-विज्ञानी पंडितों को क्या देखकर आश्चर्य हुआ?
उत्तर-भाषा-विज्ञानी पंडितों को यह आश्चर्य हुआ कि आस्टेलिया से काफी दूर बसी जातियों की भाषा एशिया
में बसी हुई कुछ जातियों की भाषा से सम्बद्ध है । इस भाषा को भारत की संथाल, मुंडा आदि जातियाँ भी बोलती हैं। शुरू में इस भाषा का नाम आस्ट्रो-एशियाटिक था, बाद में इसे अग्नेय परिवार की भाषा कहा जाने लगा। इसी श्रेणी की भाषा के अनेक शब्द संस्कृत भाषा में हैं।
प्रश्न 8. कालिदास ने 'आषाढस्य प्रथम-दिवसे' किस सन्दर्भ में लिखा है?
उत्तर-कालिदास द्वारा रचित 'मेघदूत' खण्डकाव्य के अनुसार कोई यक्ष रामगिरि पर निर्वासन काल बिता रहा
था। वर्षो ऋतु आने से उसे अपनी प्रिया की विरह-व्यथा सताने लगी। तब उसने भावावेश में आकर मेघ को अपना दूत बनाया। यह श्लोक उसी समय यक्ष के सन्दर्भ में लिखा गया है।
प्रश्न 9. "मनुष्य जी रहा है, केवल जी रहा है; अपनी इच्छा अनुसार।' इसे इसके सन्दर्भ सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक कुटज के बारे में बताता है कि वह सुख-दु:ख आदि की चिन्ता न करके शान से जीता है
इस संसार में जीना, किसी के लिए कुछ करना सब ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है । कोई किसी का अपकार-उपकार नहीं से नहीं , इतिहास-विधाता की योजना के योजनानुसार जीता है।
प्रश्न 10. स्वार्थ के दायरे में रहकर जीने वालों का कैसा आचरण बतलाया गया है?
उत्तर-स्वार्थ के दायरे में रहकर जीने वाले व्यक्ति सुख, दु:ख, प्रिय, अप्रिय के मिलने पर कभी सुखी नहीं
होते। स्वार्थ की खातिर वे दूसरे के द्वार पर भीख माँगते हैं, भय से अधमरे हो जाते हैं। वे अपनी उन्नति के लिए
अफसरों के जूते चाटते हैं, दूसरों को अवमानित करने के लिए ग्रहों की खुशामद करते-उनकी पूजा करते हैं।
आत्मोन्नति के लिए वे कोरा ढोंग और दिखावा करते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1. हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित'कुटज' निबन्ध की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-'कुटज' द्विवेदी जी का आत्मपरक और व्यक्ति व्यंजक निबन्ध है। कुटज एक जंगली वनस्पति है, जो
हिमालय की विषम पर्वत श्रृंखलाओं में नीरस एवं शुष्क चट्टानों के बीच भी हरा- भरा रहता है। 'कुटज' स्थितप्रज्ञ है,जीवट है। जीवन का उल्लास और उमंग उसमें कूट-कूट कर भरा है। द्विवंदी जी ने 'कुटज' की अपराजेयता और जिजीविषा के माध्यम से जीवन धमिता को बचाये रखने का सेंदेश दिया है। अनुभव का सत्य कैसे आसपास के परिवेश
से जुड़ जाता है और उसकी जड़ें कितनी गहरी हैं -इन सभी बिन्दुओं को द्विवेदी जी 'कुटज' के माध्यम से फक्कडाना शैली में व्यक्त करते हैं। 'कुटज' जैसे साधारण और ठिगने वृक्ष की असाधारणत्व की प्रतिष्ठा असल में मनुष्य के जीवट की प्रतिष्ठा है । 'कुटज' का जीवन मानव के लिए अनुकरणीय है। गमीं में भी फूलों से लदकर 'कुटज' मनुष्य को जीने की कला सिखाता है । प्रस्तुत निबंध में हास्य और व्यंग्य भी है । संस्कृत शब्दों की बहुलता के कारण इसकी भाषा कठिन हो गई है।
प्रश्न 2. लेखक ने ' कुटज' निबन्ध में व्यक्ति सत्य और समाज सत्य के विषय में जो विचार प्रस्तत किये हैं
उन्हें स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक नाम और रूप को लेकर विचार व्यक्त करते हैं । वे कहते हैं कि नाम बड़ा होता है या रूप
पद पहले है या पदार्थ, जब पदार्थ सामने है तो फिर नाम की क्या आवश्यकता है । लेकिन व्यक्ति का मन नहीं मानता है । वह हर पदार्थ का नाम जानना चाहता है । इसलिए नाम को बंड़ा बताया है, नाम इसलिए भी बडा है क्योंकि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है । इसलिए नाम समाज- सत्य है और रूप व्यक्ति -सत्य।
नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी हो। जिसे आधुनिक शिक्षित लोग 'सोशल सेक्शन' कहते हैं। लेखक भी नाम को ही महत्त्व देते हैं । जो समाज द्वारा स्वीकृत हो, इतिहास द्वारा प्रमाणित हो, समष्टि-मानव के हदय है ।
गंगा से निकला हुआ हो। जिसे सिर्फ के सहारे नहीं बल्कि नाम के सहारे समस्त संसार जानता हो। लेखक
समाज-सत्य को महत्ता देते हैं।
प्रश्न 3.'इज्जत को नसीब की बात है लेखक के उक्त कथन को "कुटज" के के परिपेक्ष्य में उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर- लेखक कुटज के सम्बन्थ में कहते हैं कि वह सम्मान पाने वाला वृक्ष है । किन्तु कवियों द्वारा अपमानित है। वह ठिगना- सा वृक्ष है और छायादार भी नहीं है । कालिदास ने 'मेघदूत' में 'कुटज' का पुष्प अध्य देकर मेघ से अभ्यर्थना की थी। जाहिर सी बात है कि शिवालिक की ऊँची पहाड़ियों पर उस समय कोई पुष्प नहीं मिला होगा। कुटज' ने ही उनके संतृप्त हृदय को सहारा दिया था। इसके पश्चात् कभी किसी कवि ने 'कुटज' को सम्मान नहीं दिया। लेखक इसीलिए कहते हैं कि इज्जत या सम्मान पानी नसीब की बात होती है। जैसे रहीम साहित्य प्रेमी और दरियादिल आदमी थे। जब तक उनसे काम था, लोगों ने खुब काम निकाला फिर रस लेकर आम की गुठली और छिलकों के समान फेंक दिया। रहीम की दोनों हाथों से लूटायी दरियादिली किसी को याद नहीं रही। किसी ने उन्हें सम्मान देने की पहल नहीं की। लेखक कुटज और रहीम के नसीब की समानता व्यक्त करते हैं और सिद्ध करते हैं कि दोनों अपने कार्य-व्यवहार में अनुपम और अद्वितीय थे। लेकिन लोगों ने नहीं समझा। इससे न तो कुटज का मोल घटता है और न ही रहीम का। दोनों की फक्कड़ाना मस्ती और जीवंतता सदैव बनी रही।
समझाइए।
प्रश्न 4. 'जीना भी एक कला है' । 'कुटज' निबन्ध के आधार पर लेखक के विचारों को अपने शब्दों में
व्यक्त कीजिए ।
उत्तर-लेखक का कहना है कि सारा संसार अपने मतलब के लिए जी रहा है। उन्होंने ऋषि याज्ञवल्क्य की
उक्ति 'आत्मनस्तु कामाय सर्व प्रिय भवति' के माध्यम से इस बात की पुष्टि की है। संसार में जहाँ कहीं प्रेम है सब
मतलब के लिए है। संसार में प्रेम, त्याग, परार्थ, परमार्थ कहीं नहीं है, केवल प्रचण्ड स्वार्थ है। किन्तु लेखक ऐसा नहीं मानते हैं। वे कहते हैं कि स्वार्थ से बड़ी भी कोई बात अवश्य है जो जीने को प्रेरित करती है। सबको अपने में मिलाकर जीवन जीना ही कला है । जिस प्रकार कुटज जी रहा है। उसकी तरह जीना कला नहीं तपस्या है । लेखक कुटज की तरह जीवन जीने पर बल देते हैं कि जीना है तो प्राण डाल दो जीवन में, मन डाल दो जीवन रस के उपकरण में । जीने के लिए जीना बड़ी बात नहीं है, औरों के लिए जीना ही मनुष्य का जीना है।
प्रश्न 5. लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने "कुटज' की कौनसी विशेषताएँ बताई हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक ने बताया कि 'कुटज एक ठिगना-सा पौधा है, जो नाम और रूप दोनों में अपनी अपराजेय
जीवन शक्त की घोषणा करता है। कुटज कठोर पाषाण को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर अपना भाग्य - संग्रह करता है। वह कठिन परिस्थितियों में हार नहीं मानता है। उसकी अविचल जीवन दृष्टि है अथ्थात वहं कभी भी विचलित नहीं होता है । वह वंशी है, अपने मन को वश में रखता है। वह बैरागी है, उसे संसार के स्वार्थों से कोई लेना-देना नहीं है। कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता है। वह 'गाढ़े का साथी है। अर्थात मुसीबत या कष्ट के समय वह सदैव काम आता है। स्वभाव से फक्कड, मस्त, निर्लिप्त व योगी के समान है। जो अपनी ही धुन में जीता चला जा रहा है । जो अजेय है तथा दुरंत शक्ति वाला है । वह दुसरों के द्वार पर भीख माँगने नहीं जाता तथा कोई पास आ गया तो डर के मारे अधमरा नहीं होता। नीति और धर्म का उपदेश नहीं देता। वह जाता है और शान से जीता है। चाहे सुख हो या दु:ख, प्रिय हो या अप्रिय जो मिल जाए, हृदय से बिल्कृल अपराजित हाकिर उल्लास सहित ग्रहण करता है।
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