श्रम विभाजन और जातिप्रथा बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर
श्रम विभाजन और जातिप्रथा
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1. जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आम्बेडकर का क्या तर्क है?
उत्तर-आम्बेडकर का तर्क है कि जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का एक रूप मानना अनुचित है। क्योंकि ऐसा विभाजन अस्वाभाविक और मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है । इसमें व्यक्ति की क्षमता का विचार किये बिना उसे वंशगत पेशे से बांध दिया जाता है, वह उसके लिए अनुपयुक्त एवं अपर्याप्त भी हो सकता है। फलस्वरूप गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या आ जाती है।
प्रश्न 2. जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह
स्थिति आज भी है ?
उत्तर-भारतीय समाज में जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका
जातिगत पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। यदि वह पेशा उसके लिए अनुपयुक्त हो अथवा अपर्याप्त हो तो उसके सामने भुखमरी की स्थिति खड़ी हो जाती है। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का भी एक प्रमुख कारण बनती रही है।
प्रश्न 3. लेखक के मत से 'दासता' की व्यापक परिभाषा क्या है?
उत्तर-लेखक के अनुसार दासता केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता । दासता में कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। इसमें कुछ लोगों को अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशा अपनाना पड़ता है तथा व्यवसाय -चयन की स्वतन्त्रता नहीं रहती है।
प्रश्न 4. शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित
रहने के बावजूद आम्बेडकर 'समता' को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं ? इसके पीछे
उनके क्या तर्क हैं?
उत्तर-अम्बेडकर का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता के विकास का पूरा अधिकार है। हमें ऐसे
व्यक्तियों के साथ यथासम्भव समान व्यवहार करना चाहिए। समाज के सभी सदस्यों को आरम्भ से हो समान अवसर तथा समान व्यवहार उपलब्ध कराये जाने चाहिए। समता यद्यपि काल्पनिक वस्तु है, फिर भी सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए यही मार्ग उचित है और व्यावहारिक भी है।
प्रश्न 5. सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है,
जिसकी प्रतिष्टा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं ?
उत्तर-डॉ. आम्बेडकर भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि से जातिवाद का उन्मूलन चाहते थे। क्योंकिे कुछ लोग किसी उच्च वंश या जाति में पैदा होने से ही उत्तम व्यवहार के हकदार बन जाते हैं। परन्तु थोड़ा विचार करके देखा जावे, तो इसमें उनका अपना योगदान क्या है? अतः मनुष्य की महानता उसके प्रयत्नों के परिणामस्वरूप तय होनी चाहिए। वैसे भी जातिवाद की भावना समता में बाधा उत्पन्न करती है।
प्रश्न 6. आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक 'भ्रातृता' को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों
को भी सममिलित किया है अथवा नहीं? आप इस 'भ्रातृता' शब्द से कहाँ तक सहमत हैं ? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे / समझेंगी?
उत्तर-लेखक ने आदरश समाज के तीन तत्व माने हैं- समता, स्वतन्व्रता और भ्रातृता। समाज के इस तीसरे तत्व 'भ्रातृता' पर विचार करते समय लेखक ने स्त्रियों का अलग से उल्लेख नहीं किया है।
इसमें 'भ्रातृता' शब्द का आशय सामाजिक जीवन में गतिशीलता, अबाध सम्पर्क तथा बहुविध हितों में सबका सहभाग होना है। इस तरह भ्रातृता का अर्थ "भाईचारा' लिया जाना उचित है, इसे 'बन्धुता' भी कह सकते हैं। 'भ्रातृता' शब्द संस्कृतनिष्ठ है, जबकि 'भाईचारा' शब्द सरल एवं सद्भावजनक व्यवहार का सूचक है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
लघू्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1. "असमान प्रयत्न के कारण असमान व्यवहार' से आप क्या समझते हैं? क्या आप इस दृष्टिकोण से
सहमत हैं? मौलिक उत्तर दीजिए।
उत्तर- श्रम करने की शक्ति या शरीर-रचना के अनुसार व्यक्ति काम करता है, इस कारण उसका प्रयत्न असमान रहता है और उसी अनुपात से उसे लाभ मिलता है । डॉ. अम्बेडकर का यह कथन आशिक रूप में उचित है । परन्तु उच्च कुल, श्रेष्ठ शिक्षा, पैतृक सम्पदा और व्यावसायिक प्रतिष्ठा के कारण असमानता का व्यवहार उचित ही माना जाता है।
प्रश्न 2. मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर करती है? बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर के 'मेरी कल्पना
का आदर्श समाज' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-बाबा साहेब आम्बेडकर ने बताया कि मनुष्य की क्षमता तीन बातों पर निर्भर करती है- (1) शारीरिक
वंश-परम्परा, (2) सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात सामाजिक परम्परा के रूप में माता-पिता की कल्याण-कामना, शिक्षा तथा वैज्ञानिक ज्ञानार्जन अदि सभी उपलब्धियाँ तथा (3) मनुष्य के अपने प्रयत्न ।
प्रश्न 3. लेखक ने किन कारणों से जाति -प्रथा को अस्वीकार्य माना है?किन दोषों के कारण जाति-प्रथा स्वीकार्य नहीं है?
अथवा
उत्तर-लेखक ने जाति-प्रथा के अनेक कारणों जैसे अस्वाभाविक श्रम-विभाजन, श्रमिक -वर्ग में भेदभाव, ऊँच-नीच की भावना, वंशानुगत कार्य होने से रुचि और क्षमता का ध्यान न रखना, अपयासत व्यवसाय से बेरोजगार रहना,स्वतन्त्रता-समता एवं बन्धुता की भावना में कमी आना। जिनके परिणामस्वरूप आदर्श समाज का निर्माण रुक जाता है।
प्रफन 4, डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी के क्या कारण बताए हैं ? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर- आम्बेडकर ने प्रमुख कारण जाति-प्रथा, जाति पर आधारित श्रम का दोषपूर्ण विभाजन, श्रमिकों की क्षमता का आकलन किये बिना उनका अस्वाभाविक विभाजन और वंशानुगत रोजगार से बंध जाना बताये हैं । इन कारणों सेउनकी स्वाभाविक प्रेशणा, रुचि और आत्मशक्ति दब जाती है। इससे उनका विकास रुक जाता है ।
प्रश्न 5. जाति प्रथा से समाज को क्या आर्थिक हानि होती है?
उत्तर-जाति- प्रथा के अनुसार अपना पेशा निश्चित करने में उसकी रुचि, क्षमता और प्रशिक्षण आदि का कोई
योगदान नहीं रहता है। मजबूरी में अपनाने से वह जीवन- भर के लिए उससे बंध जाता है जिससे उसकी कार्य- कुशलता कमजोर पड जाती है और आर्थिक लाभ भी नहीं मिलता है। अतः जाति-प्रथा से समाज एवं व्यक्ति को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।
प्रश़न 6. डॉ. आम्बेडकर ने आदर्श समाज के सम्बन्थ में क्या मान्यता व्यक्त की है?
उत्तर-डॉ. आम्बेडकर की मान्यता है कि आदर्श समाज स्वतन्त्रता, समता और भ्रातृता पर आधारित हो । इसके
लिए आदर्श समाज में गतिशीलता तथा बहुविध हितों का सहभाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सहभागी होना चाहिए। जिससे कर्तव्यों और इच्छाओं में सुन्दर समन्वय स्थापित हो जायेगा। इसी का दूसरा नाम लोकतन्त्र है।
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